आयना
आज बहुत दिनों बाद देखा आयना,
अजीब सा लगा,
वो जो रोज कहता था,
कुछ भी असंभव नही है,
वो कहने लगा ये असंभव है ।
मुझे खुद को पहचानना
मुश्किल हो गया है अब,
आयाने का क्या कसूर
अजीब सा लगा,
वो जो रोज कहता था,
कुछ भी असंभव नही है,
वो कहने लगा ये असंभव है ।
मुझे खुद को पहचानना
मुश्किल हो गया है अब,
आयाने का क्या कसूर
सच की तस्वीर और ज्यादा स्पष्ट होती है जिसे हजम करना आसान नहीं होता…।
Posted by Divine India | 10:29 PM
अपने को जानने की जिज्ञासा मनुष्य को सत्य की ओर ले जाती है।लगता है आप की यात्रा शुरू हो गई है।
Posted by परमजीत सिहँ बाली | 11:48 PM